1886 में चिरगाँव, झाँसी में जन्म। पिता रामचरणदास – कवि; परिवार साहित्य-प्रधान। प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेज़ी का अध्ययन किया।
बाल्यकाल का यह शैक्षणिक एवं साहित्यिक वातावरण आगे चलकर उन्हें राष्ट्रकवि बनाने की नींव बना।
गुप्त जी की रचनाएँ हिन्दी साहित्य, राष्ट्रवाद और जन-लोकप्रियता का सेतु बनीं।
भारत-भारती (1912), साकेत, यशोधरा और पंचवटी ने खड़ी बोली को सशक्त साहित्यिक स्वर दिया।
भारत-भारती जैसे काव्य ने स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया और जनमानस को प्रेरित किया।
सरल भाषा, सांस्कृतिक गौरव और प्रेरक विचारों ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ का सम्मान दिलाया और काव्य जन-जन तक पहुँचा।
‘भा-सा-य-प’ स्मरण रखें—भारत-भारती, साकेत, यशोधरा, पंचवटी—गुप्त जी की चार प्रसिद्ध कृतियों।
गुप्त जी ने खड़ी बोली को काव्य की सम्मानित भाषा बनाया। उनकी शैली सरल, संस्कृत-संपृक्त तथा ऐतिहासिक चेतना से पूर्ण है।
स्वतंत्रता आंदोलन के काल में रचित इस कविता में गुप्त मानवता के पतन पर चिंता व्यक्त करते हैं। वे पाठकों को परोपकार, सहानुभूति और उदारता अपनाकर समाज की सेवा करने का संदेश देते हैं।
सच्चा मनुष्य वही है जो स्वयं से आगे बढ़कर दूसरों के कल्याण के लिए जीता है।
Source: मैथिलीशरण गुप्त (1886–1964)
गुप्त जी बताते हैं—मनुष्य अपनी शक्ति और ज्ञान से मानवमात्र का उपकार करे।
परोपकार और निस्स्वार्थ सेवा में दया, त्याग तथा राष्ट्र-उत्थान का भाव जुड़ा है।
शब्द को उसके अर्थ से मिलाएँ (Drag & Drop)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| इरज | इच्छा |
| owQtrh | इच्छाओं पर नियंत्रण |
| jafrnso | इन्द्रदेव |
| nèkhfp | धृतराष्ट्र |
| m'khuj | अशोक |
| varjSD; | आत्म-अधिकार |
कवि के अनुसार ‘सच्चा मनुष्य’ कौन है?
कवि ‘त्याग’ को मानवता का मूल संदेश मानते हैं।
बिलकुल सही। कविता का मूल संदेश है कि त्याग करने वाला ही सच्चा मनुष्य है।
पुनः सोचें—कवि ‘दूसरों के लिए त्याग’ को मनुष्यत्व की पहचान बताते हैं।
पुनरावलोकन: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
खड़ी बोली हिन्दी के अग्रदूत
कविता ‘मनुष्यता’ का मूल संदेश – नि:स्वार्थ परोपकार
परिष्कृत शब्दावली व अलंकारों का प्रभावी प्रयोग
सम्पूर्ण सृजन मानवता की सेवा को समर्पित
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